क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी का शहादत दिवस हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बड़े श्रद्धा पूर्वक राष्ट्रीय नवनिर्माण सेना के तत्वाधान में मनाया जाएगा
अब भी जिसका खून न खौला वो खून नहीं पानी है, जो देश के काम न आए वो बेकार जवानी है
भारत के महान क्रांतिकारी और सच्चे देशभक्त चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 में मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गाँव में पंडित सीताराम तिवारी के घर में हुई थी। चन्द्रशेखर आज़ाद बचपन से ही साहसी थे। उनकी एक कहानी बहुत मशहूर हैं। एक बार दोस्तों में बात हुई की एक माचिस की तीली जब इतनी रौशनी देती है तो पूरी माचिश के तिली को एक साथ जला दिया जाये तो कितनी रौशनी होंगी लेकिन एक साथ जलाने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी। तभी चन्द्रशेखर आज़ाद आगे आये और एक साथ पुरे तिली को जलाये जिससे उनकी हाथ जल गई लेकिन जबतक तीली पूरी न जली उन्होंने उसे न छोड़ा।
चन्द्रशेखर आज़ाद की क्रन्तिकारी जीवन
जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भारत के नौजवानों के सोये हुए आत्मा को झकझोर कर रख दिया। उस वक़्त चन्द्रशेखर आज़ाद सिर्फ 13 साल के बालक थे, इस हत्याकाण्ड ने चंद्रशेखर के जीवन पर काफी घहरा प्रभाव डाला। चन्द्रशेखर आज़ाद ने कसम खाई इन फ़िरंगिओ को हिन्दुस्तान से भगा कर रहूँगा। जब महात्मा गाँधी ने असहयोग आल्दोलन का आवाहन किया था तब चन्द्रशेखर अपने दोस्तों के साथ बढ़ चढ़ कर भाग लिया। इस आल्दोलन के दौरान चन्द्रशेखर आज़ाद को जब गिरफ़्तार कर के जज के सामने पेश किया गया। तब जज ने चंद्रशेखर से उनका नाम, पिता का नाम तथा पता पूछा। तब चंद्रशेखर ने जवाब देकर इस किस्से को इतिहास में अमर कर दिया। चंद्रशेखर आज़ाद ने जज को अपना नाम आज़ाद बताया। पिता का नाम स्वतन्त्र बताया और अपना पता जेल बताया। जज इस जबाब सुनकर अचम्भित रह गए। जज ने आदेश दिया की पन्द्रह बेंत लगाकर इस नौजवान को छोड़ दिया जाये। इस साहसिक घटना का जिक्र करते हुए पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने लिखा ” एक आज़ादी का दीवाना 15-16 साल का नौजवान जो अपने आप को आज़ाद बतलाता था। जब उसे नंगे कर के बाँध कर बेंत लगाई जाती,वो जबतक बेहोश न हुआ तबतक वो हर बेंत पर भारत माता का जय चिल्लाता रहा। बाद में वो लड़का भारत के क्रन्तिकारी कार्यो का बड़ा नेता बना “
इसके बाद चंद्रशेखर ने अपना अड्डा झाँसी में बनाया। वहाँ के नौजवानों में आज़ादी की चिराग जलाने में लग गए। लोगों में आज़ादी के मतलब समझाने लगे। नौजवानों को निशाना लगाने का प्रिशिक्षण देने लगे। बच्चों को पढ़ाने से लेकर गाड़ी चलाने तक परिक्षण लेने लगे।
चौड़ा-चौरी काण्ड के बाद महात्मा गाँधी ने असहयोग आल्दोलन ख़त्म करने को घोसणा कर दी। जिससे चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे नौजवानों को काफी धक्का पहुँची। इससे आज़ाद का कॉंग्रेस से भरोसा उठ गया। उन्हें लगने लगा की सिर्फ कॉंग्रेस से देश को आज़ाद नहीं कराया जा सकता। पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर वर्ष 1924 में हिंदुस्तानी प्रजातान्त्रिक पार्टी की स्थापना किया।
काकोरी काण्ड
अपनी पार्टी को सुचारु रूप से चलाने के लिए धन चाहिए थी जिसके लिए चंद्रशेखर आज़ाद ने फैसला किया की जिन धन्यासेठ ने लोगों से लूट कर ये आलीशान मकान बनाया उसे लुटा जाये। एक बार डकैती के दौरान गाँव वालों ने आज़ाद के साथियों पर हमला कर दिया। इसके बाद चंद्रशेखर आज़ाद ने फैसला किया की वो सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत को ही लुटा करेंगे। कुछ दिनों बाद पता चला एक ट्रेन ब्रिटिश हुकूमत के पैसे लेकर जा रही है। चंद्रशेखर आज़ाद और उनके सहयोगिओं ने फ़ैसला किया की यह भारतवर्ष के पैसे है जो ये फिरंगी लेकर जा रहे। अतः आज़ाद ने फैसला किया काकोरी में इस ट्रेन को लुटा जायेगा। दस साथियों के साथ 09 अगस्त 1925 को आज़ाद इस घटना को अंजाम देने निकल पड़े। चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने साथियों के साथ मिलकर पूरी ट्रेन काकोरी में लूट ली। लूट की इतनी बड़ी घटना इतिहास में काकोरी काण्ड के नाम से दर्ज़ हो गई। इस घटना से अँग्रेजी हुकूमत हिल गई उन्होंने पूरी आजमाई लगा दी चंद्रशेखर आज़ाद और उनके साथियों को पकड़ने में।
चंद्रशेखर आज़ाद को पकड़ने के लिए लगाए गए इस्तेहार
अँग्रेजी सिपाही ने रात-दिन एक कर दी चंद्रशेखर आज़ाद और उनके साथियों को पकड़ने के लिए। आज़ाद भेष बदलने में माहिर थे। इसलिए उन्हें पकड़ पाना मुश्किल था। लेकिन आज़ाद के साथी एक-एक कर के मारे जाने लगे। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल सहित पांच साथियों को पकड़ कर 19 दिसंबर 1927 को फाँसी दे दी गई तथा अन्य 16 साथियों को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। ज्यादातर साथियो के मारे जाने तथा पकड़े जाने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद असहाय हो गए और झाँसी से कानपुर भाग कर चले गए।
08 सितम्बर 1928 को दिल्ली के एक स्थान पर छोटे-छोटे सभी क्रांतिकारियों दलों को बैठक चंद्रशेखर आज़ाद ने बुलाई। सभी ने फैसला किया की सभी दल का विलय कर एक क्रन्तिकारी विशाल संगठन बनाना चाहिए और उस दल का नया नाम दिया गया ” हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन “, इस संघठन के सेना दल के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद को बनाया गया तथा प्रचार-प्रसार का जिम्मा भगत सिंह को सौंपा गया। इस दल का नारा था – ” हमारी लड़ाई उस वक़्त तक जारी रहेंगी जबतक हमें आज़ादी या मौत न मिल जाती “
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